परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है. और यह अटल नियम सभी के लिये समान है. इससे कोही भी बच नही सकता. इस परिवर्तन मे कही बदलाव होते है. इसमे कुछ बदलाव किसी के लिये अच्छे, तो किसी के लिये बुरे साबीत हो जाते है. लेकिन अंततः निर्णय किये गये कार्य पर निर्भर करता है.
उदहारण के लिए, समाज मे परिवर्तन हर एक चीज मे होता है. चाहे वह मनुष्य हो अथवा कोही. यहा निर्जीव चीज भी परिवर्तन से बच नही सकती. जैसे जन्म के बाद मौत, विकास के बाद गिरावट, एक युग के बाद दुसरा युग ,रीति-रिवाजों, परंपराओं में परिवर्तन, विचारो मे परिवर्तन, परिस्थितीयों मे परिवर्तन ई. अगर कोई चीज़ जीवित है, वह आगे जाकर मृत मे परिवर्तीत होगी. साथ ही निर्जीव वस्तू भी कभी ना कभी नष्ट हो जायेगी. याने यहा आपको एक बात समज मे आयी होगी, इस प्रकृति मे कोही भी चीज स्थिर अथवा अविनाशी नही है. हर एक चीज मे परिवर्तन होणा अटल है. जैसे जीव जन्म लेता है, तब आरंभ मे वह शिशु के रूप मे होता है. बाद मे वह बच्चे में बदल जाता है. आगे जाकर वह एक युवा और वरिष्ठ व्यक्ती मे परिवर्तन होता है. जब एक महाकाय विनाश होता है, तब आप देखेंगे, इस महाविनाश के बाद नई चीजें, नई संस्कृती, नई परंपराऐं और नये नये जीव की उत्पत्ती होती है. प्रकृति के यह नियम सबके लिये बराबर है.
दोस्तों, प्रकृति के यह नियम किसी को भी भूलना नहीं चाहिए. क्युंकी हम सभी इस नियम का हिस्सा है. जैसे मैने उपर कहां है, इन नियमों का परिणाम भी हमे सहना पडेगा. इसलिये परिणामों को डरकर भागणा भी आपके लिये सही नही है. अगर आपको जीवन मे सफल बनना है, तो प्रकृति के बदलाव को स्वीकार करणा जरुरी है.
हम अब इस बदलाव को स्वीकार करके, अपने आपको कैसे बचाना है? इस बारे मे सारांश मे जाणते है.
प्रकृति के शाश्वत नियमों से बचने के लिये, मनुष्य की सोच शक्ति है.
प्रकृति के कुछ नियम ऐसे होते है, वह नियम खुद्ध मानव पर निर्भर होते है. इसमे मनुष्य की सोच मनुष्य का ब्रह्माश्त्र है. यह सोच मनुष्य को अच्छे यहा बुरे परिवर्तन के तरफ जाणे का रास्ता दिखाती है. लेकीन यहा मनुष्य पर निर्भर रहता है की, उसे कौनसे रास्ते पर जाना है, अछे या बुरे. मनुष्य की सोच ही सुख और दु:ख का एहसास करा देती है. मगर यह मनुष्य पर निर्भर है की, उसकी सोच सुख की तरफ जाती है, या दु:ख की तरफ जाती है. मनुष्य का दु:ख का कारण है, अत्यधिक इच्छा, अहंकार और ईर्ष्या यह तीन गुण मनुष्य को दु:ख के रास्ते पर ले जाते है. अगर मनुष्य को अच्छी सोच मे परिवर्तन करना है, तो उन्हे यह तीन गुणों का त्याग करना पडेगा. आपको किसी से अत्यधिक इच्छा या स्पर्धा नही करनी है. आपको अपने लक्ष को केंद्रित करके, उस रास्ते पर मेहनत करनी है. उस रास्ते पर कितने भी संकट आये, आपको अपने विश्वास और दृढ निश्चय के साथ, उस संकट का सामना करते हुये अपने लक्ष को हासील करना है. फिर देखिये दु:ख आपके पास नही, आपसे दूर भागेगा. और यह सब कुछ आपके सोच पर निर्भर करता है. इसलिये सोच बदलो, आप खुद ही बदल जाओगे.
मनुष्य ने तिथली से कुछ शिखना चाहिये. तिथली की उम्र १/२ या २ दिन की होती है. लेकीन यह तिथली अपना जीवन इतने ख़ुशी से बिताती है कि, वह अपने मृत्यु को भी भूल जाती है. अगर इतने कम दिनों की आयु होणे के बाद भी वह ख़ुशी से रह सकती है, तो मनुष्य क्यू नही? मनुष्य का दु:ख का बडा कारण है, मनुष्य को भौतिक सुख भोगने की बडी आदत पडी है. इसलिये मनुष्य पाप, दुराचार, खून, झगड़े, अहंकारी बन जाता है. अपने आपको बडा दिखाने के लिये वह अपनों से कम लोगोंको पिडा देना शुरू करता है. भोतिक सुख उपभोगना मनुष्य का यह बडा कारण, मनुष्य के अच्छे परिवर्तन मे बाधा डालते है.
परिवर्तन प्रकृति शाश्वत नियम है | इसलिये परिवर्तन से डरना नही चाहिये
मनुष्य का दुसरा एक दोष है की, वह खुद मे परिवर्तन करने से पहिले, वह सब मे परिवर्तन होगा तब मै करुंगा, दुसरे जब वह करेंगे, तब मै करुंगा इस हालत मे वह खुद का कंट्रोल दुसरे के हात मे देता है और एक कटपुतली की तरह रह जाता है. मनुष्य ने समजना चाहिये, जब तक वह खुद मे परिवर्तन नही लायेंगे, तब तक वह समाज को नही बदल पायेंगा. समाज की रीति-रिवाजों, परंपराओं को बदल नही पायेंगे. अगर आपको समाज से आगे बढना है, तो आपमे एक अच्छा परिवर्तन करना होगा. तब आप देखेंगे, आप खुद के साथ समाज मे भी परिवर्तन ला सकेंगे.
मनुष्य परिवर्तन से डरता है. लोग क्या कहेंगे? मै ऐसा करू तो क्या होगा? उसके परिणाम क्या होंगे? ऐसे सोच मे मनुष्य डूब जाता है. उसके लिये नई सोच दु:ख की तरह होती है. वह उसे स्वीकार करने से डर जाता है. अगर उस पर कोही अन्याय करता है, तब भी उसे डटकर सामना करने की हिम्मत नही रहती. अगर उसे ऐसे वक्त बचना है, तो परिवर्तन से डरना नही चाहिये. उसे डटकर सामना करना चाहिये. उसे समजना चाहिये परिवर्तन नई सुनहरी सुबह लेकर आती है. इसलिये उसे नये नये विचारोंको अपने अंदर लाना होगा. ऐसा सोचना चाहिये, बहादुर व्यक्ति कभी परिवर्तन से डरते नही है. उसे डटकर सामना करते है.
प्रकृती के बदलाव को स्वीकार करो
और महत्व पूर्ण बात यह है की, उसे प्रकृति मे होणे वाले किसी भी बदलाव को स्वीकार करना चाहिये. और उसे डटकर सामना भी करना चाहिये. प्रकृति के यह बदलाव मनुष्य जब स्वीकार करेगा, तभी उसे बदलाव को सामना करने का रास्ता मिल पायेगा.
मै आपको एक उदाहरण देकर समजता हु. जब नदी प्रवाह का रूप लेती है, तब वह कही भी अपना रास्ता निकालती है. लेकीन जब उसका प्रवाह बंद होता है, तब यही नदी एक जगह तालाब के रूप मे स्थिर हो जाती है. और कुछ दिनो के बाद सुक जाती है. वैसे ही व्यक्ती जब तक नदी के प्रवाह की तरह निरंतर मेहनत करेगा, तब तक कोही भी संकट उसे सफल होणे से रोक नही सकता. लेकीन वह एक जगह स्थिर होकर ऐसे ही बैठेगा, तब आप किसी भी संकट को रोक नही सकते. संकट आपको निगल लेगा और आप कमजोर होंगे. इसलिये आप निरंतर नदी की तरह बहते रहो. याने निरंतर मेहनत करते रहो. यश आपके साथ होगा.