क्या आप जिंदगी से हार चुके हो. क्या करना है क्या नही, समज नही आ रहा है. हर समय गलत विचार दिमाक मे दौड रहे है. समाज जिने नही दे रहा है. अगर ऐसी दुविधा मे आप जी रहे हो, तो जरुर श्री कृष्ण का चरित्र पढो. आपको सभी सवालों का जवाब इसमे मिल जायेगा.
आज हम ऐसे ही विषय पर जानेंगे, जो लोग अन्याय की पिडा सहन करने के बाद, उसका प्रतिरोध गलत रास्ता चुनके करते है. और बाद मे अपराध पे अपराध करते जाते है. और अंत मे उसमे ऐसे उलझ जाते है, जो बाद मे निकल ही नही पाते है.
दोस्तो.. आज हम महाभारत के कर्ण के बारे मे जानेंगे, जो इसी भूल के कारण उसने कैसे अपराधीयों का साथ दिया. बल्की वह उसमे शामिल भी हुये. और अंत मे वह उसमे इतने उलझ जाते है, जो उन्हे वह कर रहे है, वह सब गलत है, ये पता होणे बावजुद गलत लोगोंका साथ देणे मे मजबूर हुये. और आगे अपराध पे अपराध करते रहे. और अंत : मे उन्हे भयानक मृत्यू की पिडा सहनी पडी.
कर्ण सचमूच महान और दानी थे. लेकीन उन्होने मनुष्य के अंदर छुपे अहंभाव को नही छोडा. उसके वजह से आगे उन्हे बहुतसी तकलीपे सहनी पडी. अगर वह सच का हात पकडते, तो थोडी देर के लिये उन्हे तकलिप जरूर होती, लेकीन अंत: मे वह जो चाहते थे, वह उन्हे मिल जाता. संसार उन्हे पुजता. लेकीन उन्होने यह सब इसलिये खो दिया, सिर्फ अधर्म लोगोंका साथ देणे से.
जाणते है श्री कृष्ण के वाणी से, अन्याय का बदले का रास्ता कैसे होणा चाहिये बताया है. इसलिये हमे महाभारत के कर्ण का परिचय और उसके कर्म के बारे मे जानना होगा.
महाभारत युद्ध अंतिम छोर पर था. तब कर्ण के मृत्यू का समय आता है. अपने मृत्यू का समय आता देखकर उन्हे बहुत दुख हो रहा था. उसे उस समय उसपर नियतीने अन्याय किया है, ऐसा वह महसूस हो रहा था. इसलिये वह इस पिडा का कारण जाणणे के लिये श्रीकृष्ण को कहते है, “भगवन मेरा ऐसा कौनसा अपराध था, की मुझे इतना भयानक मरण मिल रहा है. मै तो अन्याय के लिये लढ रहा था. समाज मे परिवर्तन के लिये कोशिश कर रहा था. तो फिर मुझे इतना भयानक दंड क्यू?
इस सवाल का जवाब श्री कृष्ण बडी सरलता से देते है. एक बार सभी को इस जवाब को गहराई से सुनना और विचार करना चाहिये. तभी समाज गलत रास्ते से सही रास्ते पर चलेगा.
श्रीकृष्ण कहते है, “कर्ण ईश्वर ने तुम्हे विशेष बनाया था. इसलिये तुम्हे ईश्वरने कवच कुंडल के साथ धरती पर भेजा, इसलिये की तुम्हारी रक्षा हो. तुम्हे तुरंत बाद माता-पिता मिलते है. समय के साथ तुम राजा बन जाते है. इस प्रयास मे तुमे कही लोग साथ देते है. भगवान परशुराम जैसे महान गुरु मिले. कही दिव्यास्त्र तुमे मिले. लेकीन फिर भी तुमने अपने प्रयास को सफल करने के लिये अधर्म का हात पकडते हो. लेकीन मेरा ऐसा नही था. मै आज भी राजा नही हु. मै तो सिर्फ नाम धारी कार्यकारी सेवक हु. जब मेरा जन्म हुआ था, तब मौत मेरे सिर पर मंडरा रही थी. मेरे अपने ही मुझे मारने के लिये प्रयास कर रहे थे. मेरा जन्म हुआ तब मेरे माता-पिता मेरे से अलग हुये. मेरे जन्म से आज तक दुश्मन मुझे मारने के लिये प्रयास करते आ रहे है. दुश्मनों से दूर रहने के लिये मुझे अपनी जमीन छोडकर दुसरी जगह जाणा पडा. इतना होणे के बावजुद लोग मुझे रणछोड बोलते है. गलत बाते करते है. लेकीन मैने किसी से कुछ नही कहां. सिर्फ लढता रहा. अब मुझे बताओ, इतना होणे के बाद, क्या मैने गलत रास्ता चुना? बिलकुल नही. मैने हमेशा सच का साथ चुना और गलत करने वाले लोगोंको दंड दिया.
लेकीन तुम्हारे भाग्य मे तो इतना दुख नही था. ये सच बात है, तुमने समाज मे परिवर्तन लाने के लिये बहुत प्रयास किया. लेकीन इस यात्रा मे तुमने गलत लोगोंका हात पकडकर समाज मे परिवर्तन लाने की कोशिश की. इस प्रयास मे तुमने कही गलत रास्ते चुने. जो इस अपराध को भयानक दंड मिलना तय था. तुम चाहते तो, अकेले ही गलत लोगोंके से लढ सकते थे. और समाज मे परिवर्तन ला सकते थे. इस लढाई मे मै खुद तुम्हारा साथ देता. और इस धर्म युद्ध मे तुम्हारा सारथी बनता. लेकीन तुमने ऐसा नही किया. सिर्फ खुदपर हुये अन्याय के बदले मे, तुमने बहुत बडा गलत रास्ता चुना. और अपराध पे अपराध करते चले. आज तुमे ये दंड मिल रहा है, वह इसी का फल है. कर्ण, ईश्वर जब व्यक्ती को बलवान बनाता है, तब उसके पिछे बहुत बडा कारण होता है. तुम्हारे साथ भी यही हुआ है. तुम जन्मे से बलशाली जन्मे थे. लेकीन तुमने धर्म का रास्ता नही चुना. इसलिये इस अपराध का दंड हर किसी को मिलना तय है. मै खुद भगवान होकर इसे बदल नही सकता.
दोस्तो, श्री कृष्ण वाणी/ संदेश हर एक लोगोंके लिये सिख है, जो अतित मे हुये अन्याय के बदले के कारण अपराध का रास्ता चुनते है. और वह वही भी रुख नही जाते है. बल्की वह अपराध पे अपराध करते जाते है. और आगे जाकर उसमे वह ऐसे उलझ जाते है, जो वह बाहर निकल ही नही पाते है.
एक अन्याय का बदला लेने के लिये अपराध पे अपराध करना क्या सही है? मै समजता हु की, अन्याय सहन कभी नही करना चाहिये. लेकीन उस अन्याय का सामना करने के रास्ते भी उसी प्रकार होणा चाहिये, जिस प्रकार अन्याय हुआ है. कर्ण की यही गलती थी. उसके साथ अन्याय जरूर हुआ था. और उसका हक बनता था, वह उसे रोखे. लेकीन उसने इस प्रयास मे गलत लोगोंका हात पकडणे की बडी भूल की. इससे वह आगे जाकर अपराध पे अपराध कर बैठे.
दोस्तो. अंत : आपको यही सीख दुंगा की. अन्याय का बदला अपराध नही है. बल्की उसे सच के साथ चलकर सामना करना सही है. दृष्ट प्रवृत्ती को दंड देना जरुरी है, लेकीन उसे दंड सच के न्याय दंड से दे. ताकी समाज मे अराजक्ता न फैले.