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स्वामी विवेकानंदजी के जीवन मे घटीत घटनाऐं आपको विश्व जितने का साहस देंगी

“स्वामी विवेकानंद” इस नाम मे ऐसी जादु है की, देखने वाला और सुनने वाला इस नाम को प्रणाम करता है. इस नाम को धारण करने वाला मनुष्य इस युग मे एक ही जन्मा और उसका नाम था “नरेंद्र” और इस नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद होणे के लिये कैसे परिश्रम करना पढा, वह सिर्फ एक महायोगी ही कर सकता है.

दुनिया मे आठवा अजूबा कोही होगा तो वह स्वामी विवेकानं होंगे. क्युंकी यह वेदो के असीम ज्ञाते थे. उनका दिमाग इतना  तेज थी की, देखने वाला चौक हो जाता था. वह हर एक के प्रेरणा थे, और आज भी करोडो लोगोंकी प्रेरणा बने है. महात्मा गांधी से लेकर अभी के नरेंद्र मोदी तक इनकी प्रेरणा से प्रभावित है.

स्वामी विवेकानंद के प्रभावी विचारों से सभी प्रेरणा लेते है. उनके विचार समाज मे नई क्रांती लाते है. एक विकलांग शरीर मे नई जान लाने की क्षमता स्वामी विवेकानंद के प्रभावी ज्ञान से मिलती है. पुरे भारत को और भारत की संस्क्रती को पुरे विश्व मे प्रसारित करने का काम इस महान योगी ने किया. आज भारत ही नही सारा विश्व उनसे प्रेरणा लेता है.

इस लेख मे स्वामी विवेकानंदजी के जीवन मे घटीत, ऐसी घटनाओं के बारे मे आपको बताने वाले है, जीससे आप सकारात्मक विचारो से भर जायेंगे. आपके अंदर ऐसी चेतना फैल जाएगी कि, आप विश्व को जितने की अभिलाषा करेंगे.

आशा करता हु की इस लेख को पढने के बाद आपके मन को कुछ हद तक प्रेरणा मिले, तो मै अपने आपको भाग्यशाली समज जाऊंगा.

स्वामी विवेकानन्द की नैतिक कहानियाँसे सीखें, जीवन मे सफल कैसे होना है?

कहानी न.1

स्कूल मे एक छात्र को उसके प्रोफेसरने सवाल किया की, “इस संसार मे ईश्वर का अस्तित्व है या नही?” उस छात्र ने जवाब दिया, ” जी हां, इस संसार मे ईश्वर का अस्तित्व है.” उसके बाद प्रोफेसर ने दुसरा सवाल किया की, ” इस संसार मे असुरोन्का अस्तित्व है या नही? इस सवाल से वह बच्चा थोडी देर के लिये चूप बैठता है और वह बच्चा प्रोफेसर को एक सवाल पुछने की इजाजत मांगता है. प्रोफेसर उस बच्चे को इजाजत दे देते है. वह छात्र प्रोफेसर को सवाल करता है की, ” क्या इस संसार मे थंड का अस्तित्व है?” उस प्रोफेसर ने जवाब दिया, ” बिलकुल है.” उसने और एक सवाल पुछा की, “क्या इस संसार मे अंधेरा का अस्तित्व है?” उस प्रोफेसर जवाब दिया ,” बिलकुल है.”

यह दोन्हो सवाल पुछने के बाद वह बच्चा प्रोफेसर को बोलता है की, ” इस संसार मे थंड का या अंधेरा कोही भी अस्तित्व नही है. थंड तो गर्मी की अनुउपस्थती है. गर्मी के अनुउपस्थती मे थंड का ऐहसास होता है और अंधेरा तो रोशनी की अनुउपस्थती है. रोशनी के अनुउपस्थती मे अंधेरा का ऐहसास होता है. वैसे ही इस संसार मे दानव, एविल का कोही भी अस्थित्व नही है. वह तो सिर्फ ईश्वर का अनुउपस्थती का ऐहसास है. जहा सत्य, अहिंसा, प्रेम का अभाव होता है, वहा बुराई का ऐहसास होता है. वरना दानव या एविल ऐसा कुछ भी इस दुनिया मे नही है.” इस जवाब से प्रोफेसर दंग रह गये. उस बच्चे का ज्ञान देखकर प्रोफेसर चौक हो गये.आपको मै बता दु, यह बच्चा दुसरा तिसरा कोही नही वह स्वामी विवेकानंद थे.

ऐसा जवाब एक आम छात्र कभी नही दे सकता. उसके इस जवाब से हमे एक सिख मिलती है की, इस संसार मे सिर्फ अच्छाई का अस्तित्व है. बुराई तो अच्छाई की अनुउपस्थती है. सत्य ईश्वर का प्रतिक है और असत्य ईश्वर की अनुउपस्थती का ऐहसास है. इसलिये हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना हमारे लिये और हमारे मोक्ष के लिये आवश्यक है.

कहानी न. 2

यह कहानी है, जब स्वामी विवेकानंदजी वर्ल्ड कॉन्फरन्स मे शिकागो गये थे. तब वह उस वर्ल्ड कॉन्फरन्स मे भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. उस वर्ल्ड कॉन्फरन्स मे उनके भाषण से कही लोग प्रभावित हो चुके थे. अधिकांश लोग उनके चाहते बन चुके थे. उनके विचार और ज्ञान से लोगो मे सकारात्मक भावना निर्माण हो चुकी थी. तब उनके जीवन मे एक घटना घडी. एक दिन स्वामी विवेकानंद के पास एक महिला आती है. वह महिला वर्ल्ड कॉन्फरन्स मे स्वामी विवेकानंद के विचारोंसे और ज्ञान से बहुत प्रभावित थी. इसलिये उस महिलाने उनको सवाल किया की, “स्वामीजी मुझे आपके साथ शादी करनी है और आपके जैसा ज्ञानी बच्चा प्राप्त करना है.” उस पर स्वामीजी मुस्कुराये और उस महिला को कहते है की, “मै एक संन्याशी हु और साधू हु. इसलिये मै शादी नही कर सकता. लेकीन आपको मेरे जैसे बच्चे की अभिलाषा है, तो आप ऐसा करे की, मुझे ही अपना बच्चे स्वीकार करे. आपको मेरे जैसा बच्चा नही, बल्की मै आपका खुद ही बच्चा बन जाता हु.”

इस जवाब से वह महिला उनके पैर छुती है और उनको कहती है की, आप जैसा महात्मा इस दुनिया मे मैने कभी नही देखा. स्वामी विवेकानंद के इस सवाल से आप भी थोडी देर के लिये स्तब्ध रहे होंगे. क्युंकी इस घोर कलीयुग मे ऐसा जवाब देना संभवत: कठीण है. कही ऐसे साधू होते है, वह अपने आपको ब्रह्मचारी और योगी मानते है. लेकीन जब कोही सुंदर महिला उनके पास आती है, तब उनका यह ब्रह्मचारीव्रत वहासे भाग जाता है. भारत मे स्त्री को माता का दर्जा दिया गया है. हमारी संस्कृती कहती है की, स्त्री का आदर करे, उनका रक्षण करे और ऐसे विचारोन्का प्रसार स्वामी विवेकानंद ने सारे विश्व मे किया और भारत का नाम रोशन किया.

कहानी न. 3

तिसरी घटना छोटीसी है लेकीन आपको बहुत कुछ सिखकर जायेगी. जब स्वामी विवेकानंद वर्ल्ड कॉन्फरन्स मे शिकागो जानेवाले थे, तब उन्होने अपने मां शारदा से इजाजत मांगी की, “ये मां क्या मै सारे विश्व मे भ्रमण के लिये जा सकता हु? क्या मै अपने संस्क्रती का प्रसार करने के लिये विश्व मे घूम सकता हु?” तब मां शारदा उनको कहती है की, ” नरेंद्र, वह सामने जो चाकू है वह मुझे देदो?” स्वामी विवेकानंद झट से चाकू पकडकर मां शारदा को देते है. तब मां शारदा उनको कहती है की, “नरेंद तुम अभी विश्व मे हमारे संस्कृती की प्रसार करने के लिये जा सकते हो.” इस पर स्वामी विवेकानंद मां शारदा को सवाल करते है की, “मां आपने मुझे कोही सवाल या परीक्षा ले ही नही?” तब मां शारदा उनको जबाव देती है की, “नरेंद्र मै तुम्हारी परीक्षा ही ले रही थी. जब मैने तुमसे चाकू मांगा तब तुमने चाकू का लकडी वाला हिस्सा मेरे तरफ करके धार वाला हिस्सा अपने तरफ किया था. समाज मे लोग सबको दुख देने मे माहीर रहते है, लेकीन तुमने दुख अपनी तरफ किया और सुख मेरे तरफ किया. तुमने सोचा भी नही की, यह चाकू तुमे लग भी सकता था. अब तुम संसार मे अपने ज्ञान का प्रसार करने के लिये जा सकते हो और तुम इसमे जरूर सफल होंगे यह मेरे आशीर्वाद है.”

मां शारदा के इस जवाब से आपके मन को थोडो देर ही का न हो, आपमे कुछ अच्छा करने के लिये महसूस किया होगा. सब लोग सुख मे साथ देते है, लेकीन दुख मे सब भाग जाते है. दुसरे के घर के सामने कांटे कोही भी रख सकता है, लेकीन फुल कोही महान ज्ञानी मनुष्य ही रख सकता है. स्वामी विवेकानंद का चरित्र कितना साफ सुतरा था इस कहानियों  आपको पता चलता है. अपने जीवन मे भौतिक सुखो का त्याग करके समाज मे क्रांती लाने की क्षमता आम मनुष्य मे नही होती. चल उठ खडे हो और आगे बढ ऐसे प्रेरणादायी विचार स्वामी विवेकानंद ने सारे समाज को भर भर के दिया. इसलिये सारा विश्व उनके नरेद्र नाम को भुलकर स्वामी विवेकानंद नाम से जानता है.

स्वामी विवेकानंदजी के अनमोल विचार जो आपको विश्व जितने का साहस देंगे

चल उठ खडा हो, आगे बढ, संकटे कितनी भी आये डरना मत, सफलता आपकी राह देख रही है.

संकट मे खडा वही रहता है, जिसमे जितने का जुनून रहता है. इसलिये खडा हो, आगे बढे. मंजील खुद ही आपके पास नही आयेगी. आपके अंदर जितने की चाह होनी चाहिये, तभी आप मंजील के पास होंगे.

कभी नकरात्मक विचार मत करो, आप कुछ कर नही सकते. क्युंकी आप शायद आपको जानते नही की, आप अनंत शक्ती के स्वामी है.

खुद को कभी कायर मत समजो, कायारता मनुष्य का रोग है.

इसलिये खडा हो और कहो की मै आपका भाग्य खुद बनाउंगा.

दुनिया क्या सोचती है इसके बारे मे ज्यादा विचार मत करो.

आपका आत्मविश्वास और आपके इरादे झुकणे नही चाहिये. आप देख लेंगे की, यह दुनिया आपके कदमो मे होगी.

मनुष्य के विचार ही मनुष्य की पहचान बनाते है. इसलिये आप जैसा विचार करोगे, वैसे ही आप बन जाओगे.

आप अगर खुद को मजबूत समजते है तो, आप मजबूत बन जाते है.
और आप अगर खुद को कमजोर समजते है, तो आप कमजोर बन जाते है.

अगर समजो आपके जीवन मे कोही समस्या नही है, तो आप समज जाइये की आप गलत रास्ते पर चल रहे है.

आप अपने पंचमहाभूत शक्ती को पहचाने और कभी अपने आपको कमजोर मत समजीये.

कभी किसी दुसरे मनुष्य के गलत बातों पर ध्यान मत दो, आप आगे बढते चले.

अन्याय सहना करना बडा पाप है, इसलिये साहसी बनो और विनम्र बनो.

खुद पर विश्वास मनुष्य को महान बना देता है. खुद पर विश्वास, मतलब आप ईश्वर पर विश्वास रखना है.

जो भी आप कर सकते है वह करो. दुसरे पर बोझ न होते हुये आगे बढते चले. और तब तक चलते रहो, जब तक आप अपने मंजील तक पहुचते नही.

एक समय मे एक ही काम को लक्ष करे और तब तक करते रहे, जब तक आप उसे पुरा नही करते.

इन्सान छोटा हो या बडा, जीससे भी अच्छा ज्ञान मिलता है उसे ग्रहण करना चाहिये और बुरा ज्ञान किसी बडे इन्सान से ही क्यु ना मिले, उसे त्याग देना चाहिये.

यह अनमोल विचार स्वामी विवेकानंदजीनी लोगोंको ज्ञान प्रसार करते समय दिये थे. इस विचार के राह पर जो भी चलता है उसके जीवन मे कही अच्छे अच्छे बदलाव हो जाते है. वह मनुष्य सकारात्मक उर्जासे ऐसे भर जाता है. उसे सब दुनिया ईश्वरमय दिखती है. उसके मुख से अच्छाई ही निकलती है और ऐसे विचार जीस मनुष्य के मुख से निकलते है वह इन्सान लोगोन्के के नजर मे महान बन जाता है.

मै चाहता हु की आप भी स्वामी विवेकानंदजीके विचारों के रास्ते पर चले और जीवन मे सुख शांती पाये. जीवन की अनमोल संपत्ती है, सुख और शांती और यह सुख शांती आपको स्वामी विवेकानंदजीके विचारोंसे ही मिल सकती है.

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